कछुए की धीमी दौड़ - Kachhue Ki Dheemi Daud
घने जंगल में एक छोटा सा कछुआ रहता था। वह बहुत शांत और समझदार था, लेकिन उसकी धीमी चाल के कारण अन्य जानवर अक्सर उसका मज़ाक उड़ाते थे। हर दिन उसे कोई न कोई ताना सुनने को मिलता था। बंदर कहता, "तुम तो घोंघे से भी धीरे चलते हो!" खरगोश कहता, "तुमसे पहले तो सूरज भी छुप जाता है!" मगर कछुआ इन बातों की परवाह नहीं करता था। वह अपनी धीमी चाल और धैर्य को ही अपनी ताकत मानता था।

एक दिन जंगल में दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। सभी जानवर अपनी-अपनी तेज़ी दिखाने के लिए उत्साहित थे। कछुए ने भी भाग लेने का फैसला किया। उसे देखकर बाकी जानवर हंसने लगे। बंदर चिल्लाया, "अरे, यह कछुआ दौड़ में क्या करेगा? जब तक यह दौड़ पूरी करेगा, तब तक तो हम सोकर उठ जाएंगे!"
कछुआ मुस्कुराया और बोला, "तेज़ी से जीतना ही सबकुछ नहीं है, जीतने के लिए धैर्य और मेहनत भी ज़रूरी होती है।"
दौड़ का दिन आया। सभी जानवर अपनी जगह खड़े हो गए। जैसे ही दौड़ शुरू हुई, खरगोश, हिरण और बंदर तेज़ी से आगे निकल गए। कछुआ अपनी धीमी चाल में, मगर निरंतरता के साथ आगे बढ़ता रहा।
खरगोश और हिरण अपनी तेज़ी पर घमंड करते हुए रुक-रुककर खेलते और आराम करते जा रहे थे। दूसरी ओर, कछुआ बिना रुके धीरे-धीरे, लेकिन लगातार चलता रहा। वह जानता था कि उसकी ताकत उसकी निरंतरता है।
रास्ते में बारिश हो गई, जिससे कीचड़ भर गया। तेज़ दौड़ने वाले जानवर फिसलने लगे और कीचड़ में फंस गए। मगर कछुए की धीमी और स्थिर चाल ने उसे आराम से उस कीचड़ से पार करवा दिया।
जब कछुआ दौड़ का अंतिम चरण पार कर रहा था, बाकी जानवर अभी भी कीचड़ में फंसे हुए थे। अंततः, कछुए ने सबसे पहले मंज़िल तक पहुँचकर दौड़ जीत ली। सभी जानवर हैरान थे। उन्हें अपनी तेज़ी पर घमंड करने का पछतावा हुआ।
"कछुए की धीमी दौड़ - Kachhue Ki Dheemi Daud" हमें सिखाती है कि तेज़ी से भागना ही सफलता की गारंटी नहीं है। निरंतरता, धैर्य और सही दिशा में मेहनत करना सबसे महत्वपूर्ण है। जीवन में कभी-कभी धीमी चाल ही हमें उस मंज़िल तक ले जाती है, जहां तेज़ दौड़ने वाले नहीं पहुँच पाते।
तो, क्या आप भी कछुए की तरह अपनी धीमी, लेकिन निरंतर दौड़ से अपनी मंज़िल तक पहुँचने का संकल्प करेंगे?
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