अंजलि की ज़िंदगी आसान नहीं थी। अपने छोटे भाई की गंभीर बीमारी के इलाज के लिए उसे मोटी रकम की ज़रूरत थी, और उसके पास इतना समय नहीं था कि वह पारंपरिक तरीके से पैसे जुटा सके। तभी उसे एक अजीब प्रस्ताव मिला – वीरेंद्र सिंघानिया का प्रस्ताव। वीरेंद्र, एक सफल और धनी व्यवसायी, को एक साल के लिए एक पत्नी की ज़रूरत थी। उसकी दादी, जो अपनी वसीयत में कंपनी के शेयरों का एक बड़ा हिस्सा वीरेंद्र के नाम करने वाली थीं, ने शर्त रखी थी कि वह विवाहित होना चाहिए। वीरेंद्र के पास प्यार या शादी के लिए समय नहीं था, इसलिए उसने एक किराए का हमसफर ढूंढने का फैसला किया।
अंजलि के लिए यह प्रस्ताव किसी बुरे सपने से कम नहीं था। उसे वीरेंद्र के बारे में पता था – वह अपनी कठोरता और बेरहमी के लिए कुख्यात था। लेकिन अपने भाई की ज़िंदगी बचाने के लिए, उसके पास और कोई चारा नहीं था। उसने भारी मन से इस सौदे को स्वीकार कर लिया। यह उनके बीच एक कानूनी समझौता था, जिसमें अंजलि एक साल के लिए वीरेंद्र की पत्नी की भूमिका निभाएगी, और बदले में वीरेंद्र उसके भाई के इलाज का पूरा खर्च उठाएगा।
शादी एक निजी समारोह में हुई। अंजलि ने एक साधारण सी साड़ी पहनी थी, जबकि वीरेंद्र औपचारिक सूट में बेरुखा खड़ा था। उनके बीच कोई भावनात्मक आदान-प्रदान नहीं हुआ, बस कुछ ज़रूरी रस्में निभाई गईं। यह शादी दो अजनबियों के बीच का एक व्यावसायिक समझौता था।
शादी के बाद, वीरेंद्र ने अंजलि के लिए नियम स्पष्ट कर दिए। "देखो, अंजलि, यह सिर्फ़ एक साल का समझौता है। हमें समाज और मेरे परिवार के सामने पति-पत्नी का नाटक करना होगा। अपनी निजी ज़िंदगी में हम एक-दूसरे से कोई दखल नहीं देंगे। तुम्हें जो चाहिए होगा, मैं तुम्हें दूंगा, लेकिन बदले में तुम्हें मेरी पत्नी की भूमिका ईमानदारी से निभानी होगी।"
अंजलि ने सहमति में सिर हिलाया। उसे पता था कि यह रिश्ता भावनाओं पर नहीं, बल्कि शर्तों पर टिका है। वीरेंद्र ने उसे घर में एक अलग कमरा दिया, और उनका जीवन दो समानांतर रास्तों पर चलने लगा। वे साथ में नाश्ता और डिनर करते थे, पारिवारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे, लेकिन उनके बीच बातचीत हमेशा औपचारिक और सतही होती थी।
अंजलि ने वीरेंद्र के परिवार को समझने की कोशिश की। उसकी दादी, जो व्हीलचेयर पर थीं, बहुत प्यारी और স্নেহिल थीं। उन्होंने अंजलि को तुरंत अपना लिया। वीरेंद्र की माँ थोड़ी शांत स्वभाव की थीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भी अंजलि को पसंद करना शुरू कर दिया। अंजलि ने अपने अभिनय को इतना स्वाभाविक रखा कि किसी को भी उनके रिश्ते की सच्चाई पर शक नहीं हुआ।
समय बीतता गया। अंजलि ने देखा कि वीरेंद्र जितना कठोर बाहर से दिखता था, उतना ही अंदर से जिम्मेदार था। वह अपनी कंपनी को लेकर बहुत गंभीर था और अपने कर्मचारियों की ज़रूरतों का भी ध्यान रखता था। एक बार, कंपनी में बड़ी आर्थिक मंदी आई, और वीरेंद्र ने अपनी सारी बचत लगाकर किसी को भी नौकरी से निकालने नहीं दिया। अंजलि उसकी इस मानवीय पहलू को देखकर हैरान थी।
एक दिन, अंजलि के भाई की तबीयत अचानक बहुत बिगड़ गई। उसे तुरंत एक महंगे ऑपरेशन की ज़रूरत थी। अंजलि बुरी तरह डर गई थी। उसने वीरेंद्र को फोन किया, जिसकी एक महत्वपूर्ण मीटिंग चल रही थी। वीरेंद्र तुरंत सब छोड़कर हॉस्पिटल पहुँचा। उसने न सिर्फ़ ऑपरेशन का इंतज़ाम करवाया, बल्कि पूरी रात हॉस्पिटल में अंजलि के साथ रहा। उस मुश्किल घड़ी में, अंजलि ने वीरेंद्र के चेहरे पर चिंता और करुणा के भाव देखे, जो उसने पहले कभी नहीं देखे थे।
ऑपरेशन सफल रहा, और अंजलि का भाई खतरे से बाहर आ गया। उस रात, वीरेंद्र ने अंजलि से पहली बार खुलकर बात की। उसने अपने बचपन के बारे में बताया, अपने सपनों के बारे में, और उस अकेलेपन के बारे में जो हमेशा उसके साथ रहा था। अंजलि ने भी उसे अपने परिवार और अपने संघर्षों के बारे में बताया। उस रात, उनके बीच का 'किराए का' बंधन कहीं खो गया था, और उसकी जगह एक अनकही समझदारी और सहानुभूति ने ले ली थी।
अगले कुछ महीनों में, वीरेंद्र और अंजलि के रिश्ते में धीरे-धीरे बदलाव आने लगा। वे अब सिर्फ़ सामाजिक रस्मों के लिए साथ नहीं रहते थे, बल्कि एक-दूसरे की कंपनी को पसंद करने लगे थे। वे शाम को साथ में चाय पीते, फिल्में देखते और अपनी-अपनी रुचियों के बारे में बात करते। अंजलि ने वीरेंद्र के अंदर के संवेदनशील और मजाकिया इंसान को खोज निकाला, जबकि वीरेंद्र ने अंजलि की सादगी, उसकी देखभाल करने वाली प्रवृत्ति और उसकी अटूट हिम्मत को सराहा।
एक दिन, वीरेंद्र की दादी ने उन्हें अपने पास बुलाया। "मुझे पता है, वीरेंद्र, यह शादी सिर्फ़ एक समझौता था," उन्होंने कहा। "लेकिन मुझे यह भी दिख रहा है कि तुम दोनों के बीच कुछ बदल गया है।"
वीरेंद्र और अंजलि ने एक-दूसरे को देखा। उनकी आँखों में एक ऐसा भाव था जिसे वे दोनों अब तक छिपाते आए थे।
कुछ हफ्ते बाद, एक शाम, वीरेंद्र ने अंजलि को डिनर के लिए एक खूबसूरत रेस्टोरेंट में बुलाया। खाना खत्म होने के बाद, उसने अंजलि का हाथ थामा और कहा, "अंजलि, जब हमने यह समझौता किया था, तो मैंने सोचा था कि एक साल बाद हम अलग हो जाएंगे। लेकिन इन महीनों में, मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई है। तुम... तुम सिर्फ़ मेरी 'किराए की हमसफर' नहीं रही हो।"
उसने अपनी जेब से एक हीरे की अंगूठी निकाली। "अंजलि, क्या तुम... क्या तुम सच में मेरी हमसफर बनोगी? हमेशा के लिए?"
अंजलि की आँखों में आँसू आ गए। यह वह पल था जिसका उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उसने मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया। "हाँ, वीरेंद्र," उसने कहा। "मैं हमेशा के लिए तुम्हारी हमसफर बनना चाहती हूँ।"
'किराए का हमसफर' अब उसका जीवनसाथी बन चुका था। उनका समझौता, जो मजबूरी में शुरू हुआ था, अब प्यार और विश्वास के एक ऐसे बंधन में बदल गया था, जो हमेशा कायम रहने वाला था।
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