दिलों का सौदा (Dilon Ka Sauda - Deal of Hearts

आकांक्षा की आँखें लैपटॉप की स्क्रीन पर गड़ी थीं, जहाँ उसके स्टार्टअप के नवीनतम आंकड़े दिख रहे थे। एक साल पहले, यह सब एक सपने जैसा था – 'नारी शक्ति', महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाला एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म जो ग्रामीण कारीगरों के उत्पादों को शहर तक पहुँचाता था। सपना अब हकीकत बन रहा था, लेकिन हकीकत की अपनी चुनौतियाँ थीं। उन्हें तत्काल बड़े निवेश की ज़रूरत थी, वरना यह सपना बिखर सकता था।
तभी उसके सामने एक प्रस्ताव आया – अजीब, लगभग अटपटा। ऋषि कपूर, शहर का नामी-गिरामी बिज़नेसमैन और 'कपूर इंडस्ट्रीज' का मालिक। ऋषि अपनी दूरदृष्टि और कठोर बिज़नेस फैसलों के लिए जाना जाता था। उसने 'नारी शक्ति' में निवेश करने की इच्छा जताई थी, लेकिन उसकी एक शर्त थी: आकांक्षा को उससे शादी करनी होगी। यह कोई प्रेम-प्रस्ताव नहीं था, बल्कि सीधे-सीधे दिलों का सौदा था।
"आप मज़ाक कर रहे हैं, मिस्टर कपूर?" आकांक्षा ने उस दिन अपने ऑफिस में उससे पूछा था। उसकी आवाज़ में गुस्सा और अविश्वास था।
ऋषि ने अपनी तेज़ निगाहों से उसे देखा। "बिल्कुल नहीं, मिस शर्मा। मैं बिज़नेस में कभी मज़ाक नहीं करता। मेरे परिवार को एक ऐसी बहू की ज़रूरत है जो बिज़नेस संभाल सके, और मुझे एक ऐसे पार्टनर की जो मेरे सामाजिक प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ा सके। 'नारी शक्ति' में मुझे वो क्षमता दिखती है। यह आपके स्टार्टअप के लिए win-win सिचुएशन है।"
आकांक्षा के लिए यह फैसला आसान नहीं था। उसका पूरा जीवन इस स्टार्टअप में लगा था। सैकड़ों कारीगर महिलाएँ उस पर निर्भर थीं। क्या वह अपने सपनों को बचाने के लिए खुद को बेचना स्वीकार कर लेगी? रात भर की उधेड़बुन के बाद, उसने भारी मन से हाँ कर दी। यह एक बलि थी, जो उसने अपने सपनों और उन महिलाओं के लिए दी, जिनकी ज़िंदगी उसके स्टार्टअप से जुड़ी थी।
शादी सादे समारोह में हुई, परिवार के कुछ लोगों और बिज़नेस सहयोगियों की मौजूदगी में। आकांक्षा ने शादी का जोड़ा पहना, लेकिन उसके दिल में खुशी नहीं, बल्कि एक अजीब-सी खालीपन था। ऋषि ने भी कोई अतिरिक्त भावना नहीं दिखाई। उनके बीच कोई प्रेम-लगातार न था, बस एक ठोस बिज़नेस डील का समझौता था।
शादी के बाद, उनके रिश्ते ने वही रूप लिया जैसा ऋषि ने कहा था। वे एक ही घर में रहते थे, समाज के सामने एक आदर्श जोड़े की भूमिका निभाते थे, लेकिन अपने निजी जीवन में वे दो अलग-अलग ध्रुवों पर थे। ऋषि अपने कॉर्पोरेट साम्राज्य में व्यस्त रहता था, और आकांक्षा 'नारी शक्ति' को नई ऊँचाइयों पर ले जाने में।
ऋषि ने अपना वादा निभाया। 'नारी शक्ति' को भारी निवेश मिला, और आकांक्षा को अपने प्रोजेक्ट्स को आज़ादी से चलाने की पूरी छूट। उसने दिन-रात एक करके काम किया और अपने स्टार्टअप को अभूतपूर्व सफलता दिलाई। 'नारी शक्ति' अब एक ब्रांड बन चुका था।
इस दौरान, आकांक्षा ने ऋषि को करीब से देखा। वह जितना ऊपर से कठोर दिखता था, उतना ही अंदर से अनुशासित और मेहनती था। वह अपनी कंपनी के कर्मचारियों के प्रति बहुत जिम्मेदार था, और अक्सर गुप्त रूप से सामाजिक कार्यों में दान करता था। एक बार, 'नारी शक्ति' के एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में देरी हो रही थी, और आकांक्षा बहुत परेशान थी। ऋषि ने चुपचाप अपनी टीम को भेजा और उनकी मदद करवाई, बिना किसी क्रेडिट की अपेक्षा किए।
एक शाम, आकांक्षा अपने ऑफिस में देर तक काम कर रही थी। ऋषि भी उसी समय अपने दफ्तर से घर आया। उसने देखा कि आकांक्षा अपने माथे पर हाथ रखे बैठी है। "क्या हुआ?" ऋषि ने पूछा, उसकी आवाज़ में सामान्य से अधिक कोमलता थी।
"हमारे एक बड़े क्लाइंट ने भुगतान रोक दिया है। इससे हमारे कारीगरों को पैसे देने में दिक्कत आएगी," आकांक्षा ने चिंता से कहा।
ऋषि ने तुरंत अपने फोन पर कुछ नंबर डायल किए। "चिंता मत करो। मैं देख रहा हूँ," उसने कहा। आधे घंटे के भीतर, ऋषि ने उस क्लाइंट से बात की और समस्या का समाधान करवा दिया। आकांक्षा को अचंभा हुआ। वह कभी ऋषि की बिज़नेस पकड़ को समझ नहीं पाई थी।
"धन्यवाद, ऋषि," आकांक्षा ने ईमानदारी से कहा। यह पहली बार था जब उसने ऋषि को उसके नाम से पुकारा था और उसके प्रति कोई सच्ची भावना व्यक्त की थी।
ऋषि ने बस सिर हिलाया। "यह सिर्फ़ बिज़नेस है, आकांक्षा। और अब, यह हमारा बिज़नेस है।"
इस घटना के बाद, उनके बीच की अदृश्य दीवार पतली होने लगी। वे अक्सर बिज़नेस के बारे में बात करते, एक-दूसरे को सलाह देते। ऋषि ने 'नारी शक्ति' के विस्तार में मदद की, और आकांक्षा ने उसे अपने सामाजिक प्रोजेक्ट्स को अधिक प्रभावी बनाने के सुझाव दिए। उनके बीच अब एक आपसी सम्मान और समझदारी विकसित हो चुकी थी। यह 'दिलों का सौदा' धीरे-धीरे एक साझेदारी में बदल रहा था, जिसमें सिर्फ़ बिज़नेस नहीं, बल्कि एक-दूसरे के व्यक्तित्व का भी सम्मान था।
एक दिन, 'नारी शक्ति' को राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा सम्मान मिला। आकांक्षा को स्टेज पर बुलाया गया। उसने अपनी सफलता का श्रेय अपनी टीम और अपने पति, ऋषि कपूर को दिया। ऋषि, जो दर्शकों के बीच बैठा था, के चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान थी – गर्व की मुस्कान।
जब वे घर लौटे, तो आकांक्षा ने ऋषि से कहा, "यह सब आपकी वजह से संभव हुआ, ऋषि। आपने मेरा साथ दिया, मुझ पर विश्वास किया।"
ऋषि ने आकांक्षा की आँखों में देखा। "हमेशा से एक बिज़नेस डील थी, आकांक्षा। लेकिन, मुझे लगता है कि इस डील में कुछ और भी शामिल हो गया है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गंभीरता थी। "मुझे अब तुम्हारी कंपनी पसंद है, आकांक्षा। और तुम्हारी... तुम्हारी कंपनी की तरह तुम भी मुझे पसंद हो।"
आकांक्षा के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। यह पहला मौका था जब ऋषि ने अपनी भावनाओं को इतने सीधे तौर पर व्यक्त किया था। "तो क्या... यह 'दिलों का सौदा' अब बदल गया है?" आकांक्षा ने धीरे से पूछा।
ऋषि ने मुस्कुरा कर आकांक्षा का हाथ अपने हाथ में लिया। "मुझे लगता है, अब इसमें कुछ और भी शामिल हो गया है। एक ऐसा निवेश, जिसकी कोई बिज़नेस वैल्यू नहीं है, लेकिन जिसका महत्व सबसे ज़्यादा है।"
आकांक्षा ने भी ऋषि का हाथ कसकर थाम लिया। 'दिलों का सौदा' अब सिर्फ़ एक बिज़नेस डील नहीं था। यह विश्वास, सम्मान और एक अनकहे प्यार का रिश्ता बन चुका था, जो उनकी ज़िंदगी में एक नई सुबह लेकर आया था।
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