असली बहादुरी - Asli Bahaduri
हर गाँव में एक ऐसा इंसान जरूर होता है, जिसकी कहानियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जाती हैं। हमारे गाँव में भी ऐसी ही एक कहानी है, जिसे लोग "असली बहादुरी" की मिसाल मानते हैं। यह कहानी है रवि की, जो न तो राजा था, न ही कोई योद्धा, लेकिन उसकी बहादुरी ने पूरे गाँव का दिल जीत लिया।

रवि एक साधारण किसान था, जो अपने परिवार और खेतों की देखभाल करता था। एक दिन गाँव में अफवाह फैल गई कि पास के जंगल में एक खूंखार तेंदुआ घुस आया है। तेंदुए ने कई जानवरों को घायल कर दिया था और गाँववालों को डर लगने लगा था। लोग अपने घरों से बाहर निकलने से भी कतराने लगे। इस डर के माहौल में, किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि कोई तेंदुए का सामना करेगा। लेकिन रवि ने तय किया कि वह कुछ करेगा। यही असली बहादुरी थी।
रवि ने गाँव के बुजुर्गों से बात की और तेंदुए को पकड़ने की योजना बनाई। उसने कुछ ग्रामीणों को साथ लिया और एक जाल तैयार किया। रात के अंधेरे में, जब तेंदुआ पानी पीने तालाब की ओर आया, रवि ने अपनी जान की परवाह किए बिना उसे जाल में फंसा लिया। उस पल गाँववालों ने देखा कि असली बहादुरी केवल ताकत में नहीं, बल्कि हिम्मत और समझदारी में होती है।
तेंदुए को पकड़ने के बाद, रवि ने उसे जंगल विभाग के हवाले कर दिया। गाँव अब सुरक्षित था, और लोग राहत की सांस ले रहे थे। रवि को सभी ने "असली बहादुरी" का प्रतीक मान लिया।
इस घटना के बाद रवि की कहानी हर घर में सुनाई जाने लगी। बच्चे उससे प्रेरित होकर सवाल पूछते – "क्या असली बहादुरी हमेशा इतनी मुश्किल होती है?" और रवि मुस्कुराकर कहता, "असली बहादुरी वही है, जो डर के बावजूद सही काम करने की ताकत दे।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि बहादुरी का मतलब हमेशा युद्ध जीतना नहीं होता। कभी-कभी, यह डर का सामना करने और दूसरों की भलाई के लिए कदम उठाने में होती है। तो, क्या आपने कभी "असली बहादुरी - Asli Bahaduri" का अनुभव किया है?
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