एक अजनबी हमसफर की कहानी || Ek Ajnabi Hamsafar Ki Kahani
एक छोटी लेकिन गहरी कहानी — सफर, यादें और अनकहे रिश्ते
भाग 1: सफ़र की शुरुआत
शाम का वक़्त था। दिल्ली रेलवे स्टेशन की भीड़ हमेशा की तरह शोर-शराबे से भरी हुई थी। लोगों की हड़बड़ी, चायवालों की आवाजें, announcements की गूंज और हवा में घुली धुएँ की हल्की गंध — सब कुछ मिलकर एक अजीब सी बेचैनी पैदा कर रहे थे।
अयान प्लेटफॉर्म नंबर 6 पर खड़ा था। उसके हाथ में एक बैग और टिकट थी — दिल्ली से देहरादून जाने वाली नंदा देवी एक्सप्रेस की। उसका मन किसी भारी बोझ से दबा हुआ था। नौकरी में प्रमोशन मिला था, पर दिल में खालीपन था। ज़िंदगी जैसे हर दिन दोहराई जा रही थी — सुबह ऑफिस, शाम को घर, और फिर वही अकेलापन।
वह ट्रेन में चढ़ा और खिड़की के पास अपनी सीट पर बैठ गया। डिब्बे में हल्का अंधेरा था, कुछ यात्री पहले से बैठे थे। उसने खिड़की से बाहर झांका — प्लेटफॉर्म की भीड़ अब धीरे-धीरे धुंधला रही थी। तभी उसने देखा — एक लड़की भागती हुई ट्रेन की तरफ आ रही थी।
वह शायद देर से आई थी। उसके हाथ में एक छोटा सूटकेस था और चेहरा पसीने से भीगा हुआ। वह जल्दी-जल्दी ट्रेन में चढ़ी और अयान के सामने वाली सीट पर बैठ गई।
ट्रेन चल पड़ी।
भाग 2: पहली बातचीत
थोड़ी देर तक दोनों के बीच खामोशी रही। ट्रेन की आवाज़ और पटरियों की खटखट बस सुनाई दे रही थी।
अयान ने धीरे से पूछा, “आप बहुत देर से भागती हुई आईं, समय पर पहुँच गईं वरना ट्रेन निकल जाती।”
लड़की मुस्कुराई, “हाँ, लगा था छूट जाएगी, पर किस्मत साथ दे गई। वैसे मैं हमेशा इसी तरह लेट होती हूँ।”
“कभी-कभी देर भी सही होती है,” अयान ने मुस्कुराते हुए कहा।
लड़की ने हल्का सा सिर झुकाया, “शायद आप सही कह रहे हैं।”
कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने खुद कहा, “वैसे मैं काव्या हूँ, देहरादून जा रही हूँ।”
“अयान,” उसने जवाब दिया, “मैं भी वहीं जा रहा हूँ।”
बस, उस पल से बातचीत शुरू हुई — पहले मौसम पर, फिर सफ़र पर, और फिर ज़िंदगी पर।
भाग 3: बातों-बातों में
काव्या के पास एक अजीब सी सादगी थी। उसकी मुस्कान में थकान थी, पर आँखों में चमक भी। वह अपने बारे में कम बताती थी, और सुनने में ज़्यादा दिलचस्पी रखती थी।
अयान को लगा, शायद वह पहली बार किसी अजनबी से इतने आराम से बातें कर रहा है।
काव्या ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, “कभी-कभी सफ़र ही ज़िंदगी का सबसे अच्छा हिस्सा होता है। मंज़िल से ज़्यादा अच्छा लगता है सफ़र का साथ।”
अयान ने हँसते हुए कहा, “पर हर सफ़र में ऐसा हमसफ़र नहीं मिलता।”
काव्या मुस्कुराई, “हर हमसफ़र हमेशा के लिए नहीं होता, कुछ तो बस रास्ते भर का साथ देते हैं।”
उसकी बात सुनकर अयान चुप हो गया। एक पल को लगा जैसे ये लाइन उसके दिल के किसी कोने को छू गई हो।
भाग 4: काव्या की कहानी
रात गहराने लगी थी। ट्रेन हर स्टेशन पर रुकती और फिर चल पड़ती। डिब्बे की लाइट मंद हो गई थी। बाकी यात्री धीरे-धीरे सोने लगे।
काव्या अब खिड़की के पास सिर टिकाकर बाहर देख रही थी। अयान ने पूछा, “आप कुछ सोच रही हैं?”
काव्या ने धीमे स्वर में कहा, “सोच तो बहुत कुछ रही हूँ। कभी-कभी लगता है कि ज़िंदगी एक अधूरी किताब है, जिसके कुछ पन्ने किसी ने फाड़ दिए हों।”
अयान ने गौर से देखा — उसकी आँखों में नमी थी।
“क्या हुआ?” उसने पूछा।
काव्या ने गहरी साँस ली, “पिछले साल मेरी शादी होने वाली थी। सब तैयारियाँ हो चुकी थीं। लेकिन शादी से ठीक एक हफ्ता पहले... वो हादसे में चला गया।”
अयान के पास शब्द नहीं थे। कुछ पल खामोशी रही।
काव्या बोली, “उसके बाद से मैंने बहुत कोशिश की कि सब भूल जाऊँ। पर कुछ रिश्ते यादों से नहीं मिटते। अब देहरादून जा रही हूँ — वहीं हमारी पहली मुलाकात हुई थी। शायद खुद से मिलने के लिए।”
अयान ने बस इतना कहा, “कभी-कभी यादों से भागना नहीं चाहिए, उनका सामना करना ही सुकून देता है।”
काव्या ने सिर उठाया — उसकी आँखों में कृतज्ञता थी।
भाग 5: एक रात, एक रिश्ता
ट्रेन अब हरिद्वार पार कर चुकी थी। बाहर पहाड़ों की परछाइयाँ दिखाई देने लगी थीं। अयान ने खिड़की खोली, ठंडी हवा अंदर आई।
काव्या ने कहा, “आपको पता है, आज बहुत अजीब लग रहा है। इतने समय बाद किसी से यूँ दिल खोलकर बातें की हैं।”
अयान मुस्कुराया, “कभी-कभी अजनबी ही वो बातें सुन लेते हैं जो अपने नहीं सुन पाते।”
काव्या ने सिर हिलाया, “शायद इसलिए ज़िंदगी हमें ऐसे सफ़रों से गुज़ारती है।”
धीरे-धीरे दोनों की बातें गहराती चली गईं — बचपन की यादें, अधूरे सपने, और खोए हुए रिश्ते।
रात का एक पहर बीत चुका था। खिड़की के बाहर अँधेरा अब नीले रंग में बदलने लगा था। पहाड़ों की छाया अब साफ दिखाई दे रही थी।
भाग 6: सुबह की ठंडक और एक नई सोच
सुबह के पाँच बज चुके थे। ट्रेन देहरादून पहुँचने वाली थी। ठंडी हवा डिब्बे में घुस रही थी।
अयान ने खिड़की के बाहर देखा — सूरज की पहली किरणें दूर पहाड़ियों पर पड़ रही थीं।
काव्या अब शांत थी। शायद रात की सारी बातें उसे हल्का कर गई थीं।
अयान ने कहा, “अगर कभी लगा कि बातें अधूरी रह गईं, तो कॉफ़ी पीने आ जाना।”
काव्या मुस्कुराई, “शायद ये सफ़र अधूरा ही अच्छा है। हर मुलाक़ात को मंज़िल की ज़रूरत नहीं होती।”
अयान कुछ कहना चाहता था, पर तभी ट्रेन रुक गई।
काव्या ने अपना सूटकेस उठाया और मुस्कुराते हुए बोली, “धन्यवाद, इस सफ़र को ख़ूबसूरत बनाने के लिए।”
“शायद मैं भी यही कहना चाहता था,” अयान ने जवाब दिया।
वह चली गई — भीड़ में खो गई।
भाग 7: आख़िरी मुलाक़ात
अयान प्लेटफॉर्म पर उतरा। काव्या कहीं दिखाई नहीं दी। उसने चारों ओर देखा, पर भीड़ में हर चेहरा अनजान था।
वह बाहर निकल आया, टैक्सी की ओर बढ़ते हुए उसने खिड़की से एक बार फिर स्टेशन की तरफ देखा। और तभी — उसने उसे देखा।
काव्या — स्टेशन के बाहर एक फूलों की दुकान के पास खड़ी थी। उसके हाथ में सफेद लिली के फूल थे।
अयान अनायास उसके पास चला गया। “फूल बहुत ख़ूबसूरत हैं,” उसने कहा।
काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, ये वही फूल हैं जो उसे पसंद थे... पर आज पहली बार इन्हें बिना दर्द के खरीदा है।”
अयान ने कहा, “मतलब आपने सुकून पा लिया?”
“शायद थोड़ा,” वह बोली, “कभी-कभी सुकून किसी अजनबी से बातें करने से भी मिल जाता है।”
अयान ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। “और शायद वो अजनबी भी कुछ बदल जाता है।”
दोनों एक-दूसरे की ओर देख कर मुस्कुराए। फिर बिना कुछ कहे, बिना किसी वादे के — दोनों अपने-अपने रास्ते चले गए।
भाग 8: सफ़र का असर
कुछ महीनों बाद, अयान फिर उसी ट्रेन में था — दिल्ली से देहरादून की ओर। वही सीट, वही खिड़की।
पर इस बार उसका मन अलग था। अब वह सिर्फ़ नौकरी के लिए नहीं, बल्कि खुद से मिलने जा रहा था।
उसने जेब से एक छोटा नोट निकाला — उस पर लिखा था:
“हर सफ़र का एक मतलब होता है। कुछ लोग बस राह में मिलते हैं, पर उनके शब्द ज़िंदगी का हिस्सा बन जाते हैं।”
उस नोट पर नीचे लिखा था — काव्या।
अयान मुस्कुराया, और ट्रेन की खिड़की से बाहर झाँकते हुए बोला — “धन्यवाद, अजनबी हमसफ़र।”
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