ईमानदारी का फल - Imaandari Ka Phal
एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन बहुत ही ईमानदार और मेहनती था। उसका सपना था कि वह बड़ा आदमी बने, लेकिन वह जानता था कि इस रास्ते में उसे हमेशा ईमानदारी और मेहनत से काम करना होगा। अर्जुन अपने माता-पिता की मदद करता और खेतों में काम करता, लेकिन उसके पास बहुत साधन नहीं थे।

एक दिन अर्जुन जंगल में लकड़ी काटने गया। वह जंगल में लकड़ियाँ इकट्ठी कर रहा था, तभी उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। अर्जुन बहुत परेशान हुआ क्योंकि उसकी कुल्हाड़ी ही उसका एकमात्र साधन थी, जिससे वह लकड़ी काटकर बेचता था और अपना पेट पालता था। अर्जुन ने सोचा, "अगर मेरी कुल्हाड़ी खो गई, तो मुझे बहुत मुश्किल होगी।"
अर्जुन नदी के किनारे बैठकर सोचने लगा कि क्या किया जाए। उसने अपनी कुल्हाड़ी को ढूंढने का निश्चय किया। कुछ समय बाद, अर्जुन को नदी में एक सोने की कुल्हाड़ी नजर आई। वह हैरान रह गया, लेकिन उसने सोचा, "यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं हो सकती, मुझे अपनी पुरानी कुल्हाड़ी ही चाहिए।"
अर्जुन ने सोने की कुल्हाड़ी को नदी में वापस फेंक दिया और फिर अपनी पुरानी कुल्हाड़ी ढूंढने में लग गया। कुछ समय बाद, उसने अपनी पुरानी कुल्हाड़ी पा ली। तभी नदी के देवता ने उसे आवाज़ दी और कहा, "अर्जुन, तुम इतने ईमानदार हो, तुम्हारी ईमानदारी के कारण मैं तुम्हें यह सोने की कुल्हाड़ी दे रहा हूँ।"
अर्जुन ने देवता से कहा, "धन्यवाद देवता, लेकिन मुझे तो अपनी पुरानी कुल्हाड़ी चाहिए, मैं किसी और की चीज़ नहीं ले सकता।"
देवता ने उसकी ईमानदारी देखी और उसे सोने की कुल्हाड़ी के साथ एक चांदी की कुल्हाड़ी भी दी। अर्जुन ने दोनों कुल्हाड़ियों को स्वीकार किया और खुशी-खुशी घर लौट आया।
गाँव में वापस आकर अर्जुन ने अपनी ईमानदारी की कहानी सबको सुनाई। उसकी ईमानदारी की वजह से उसे न केवल अपनी पुरानी कुल्हाड़ी वापस मिली, बल्कि एक सोने और एक चांदी की कुल्हाड़ी भी प्राप्त हुई। अब अर्जुन को सभी गाँववाले एक आदर्श मानने लगे और उसकी ईमानदारी की सराहना करने लगे।
"ईमानदारी का फल - Imaandari Ka Phal" की कहानी हमें यह सिखाती है कि ईमानदारी से किया गया हर कार्य अंततः सफलता की ओर ही ले जाता है। अर्जुन ने अपनी ईमानदारी के बल पर न केवल अपना कष्ट दूर किया, बल्कि उसे दो अनमोल तोहफे भी मिले।
क्या आप भी अर्जुन की तरह अपनी ईमानदारी को अपनी ताकत बनाने के लिए तैयार हैं?
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